आजादी आन्दोलन शुरुआत का औचित्य और स्वरुप (Concrete Plan)
सभी आंदोलनकारी, बुद्धिजीवी, नेता कृपया इसे पूरे पढें
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वर्तमान मधेश आंदोलन के १०० दिन पूरा होने के बाद यह स्पष्ट दिख रहा है कि संविधान कार्यान्वयन नहीं होगा, प्रदेश बनने की संभावना कम है, और सबसे बडी बात मधेश पूरी तरह जातिय द्वन्द्व, हिंसा और गृहयुद्ध की ओर जा रहा है। मधेशी उपर नेपाली सेना लगाकर दमन करके मधेशियों को शरणार्थी बनाकर विस्थापित करने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। नेपाल सरकार द्वारा मधेश आंदोलन को संबोधन करने की वजाय अनेकों अपमानजनक और आक्रामक रणनीति अख्तियार करना, और नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा मधेशियों को सीधे यूपी विहार जाने के लिए बोलने से लेकर मधेशियों की नागरिकता खारेज करने तक की बात की जा रही है। यह बिलकुल ही सुनियोजित है जिस तरह से भूटान में नेपालभाषियों को भगाकर शरणार्थी बनाया गया था, उसी तरह फिरंगी नेपाली शासक मधेशियों उपर दमन करके भगाने और शरणार्थी बनाने के लिए कडा कदम उठा लिया है। मधेशियों के ऊपर अन्तरराष्ट्रिय समर्थन रहने के बाबजूद भी यह हो रहा है, इससे नेपाली शासकों का कडा निर्णायक रुख साफ जाहिर होता है।
हम सभी चाहते थे कि नेपाल के संविधान जारी हो, संघीयता आ जाएँ, प्रदेश सभा और सरकार बन जाएँ। क्योंकि प्रदेश सरकार बन जाने के बाद लोग देख देते कि संघीयता क्या होती है और फिर उसका अगला चरण स्वत: आजादी होता, कोई भ्रम जनता में बाकी नहीं रहता। उसके साथ-साथ प्रदेश बन जाने के बाद मधेश को आजाद करना और भी आसान होता (क्योंकि सीमांकन, राजधानी, आधारभूत प्रादेशिक संरचना सभी तैयार रहता, खाली आजादी करना बाकी रहता)। इसलिए हम सभी वर्तमान आंदोलन में अपना मौन समर्थन देते रहे, कहीं हमसे कोई बाधा न हो इसके कारण स्वराज आंदोलन से जुडे अधिकांश कार्यक्रमों को भी पिछले महिनों में स्थगित कर दिए थे।
पर अब और इंतजार करना बिलकुल ही मधेश के लिए घातक है। क्योंकि जो संविधान संशोधन का हवा मधेशी पार्टी दे रही है उसके लिए दो-तिहाई बहुमत वर्तमान सरकार के पास हैं नहीं, अगले कुछ महिनों के बाद सरकार गिराने के बाबजूद भी वह वह दो-तिहाई बहुमत मिलेगा नहीं क्योंकि जिस एमाले सरकार को गिराके नई सरकार बनाई जाएँगे, उसे एमाले पार्टी क्यों समर्थन करेगी जब वह खुद की सरकार बचाने के लिए मधेशियों के पक्ष में नहीं रहे हो?इसलिए इस आंदोलन का निकास कुछ नहीं है। संविधान संशोधन की राह में जाने के बदले, मधेश में जातिय द्वन्द्व, हिंसा और गृहयुद्ध होने की सम्भावना बहुत ही ज्यादा बढ गई है, मधेश उसी की ओर चल पडी है, मधेश सिरिया और सुडान की राह पर चल पडी है। सबसे बडी बात, जब मनसाय ही सही न हो, तो २-३ वर्ष आंदोलन करके नेपाली शासकों को झुकाकर संशोधन कर लेने के बाद ही क्या होगा? कितना दिन टिकेगा संशोधन ? और अभी तो संघीय कानून और संरचना बनाना शुरु भी नहीं हुआ है, वहाँ हरेक कानून में, हरेक संरचना में विभेद होना है, और आंदोलन की जरूरत पडेगी। यानि कि मधेश में अनवरत का गृहयुद्ध और अस्थिरता होगी, यह सुनिश्चित है।
इस कारण से मधेश के लिए और इंतजार करना अपने आंखो के आगे मधेश को जातिय द्वन्द्व, हिंसा और गृहयुद्ध में धकेलना होगा। और इंतजार करना मधेश के लिए बिलकुल ही घातक होगा। इसलिए अब मधेश को आजादी आंदोलन में लगने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। यह बात सभी मधेशी पार्टी, नेता, कार्यकर्ता, आंदोलनकारी, बुद्धिजीवि इमान्दारी से सोचें, मानें, और पहल करें तो ही हम सभी मधेश और मधेशियों का अस्तित्व बचा पाएँगे। आजादी के लिए जनसमर्थन भी व्यापक है, इसलिए मधेश को आजादी की ओर निकास देना ही होगा। अगर नहीं तो मधेशी जनता में जो क्रोध है, फ्रस्ट्रेशन है, वह हिंसा में बदलेगी, और मधेश पूरी तरह हिंसात्मक गृहयुद्ध के चपेट में फँस जाएगा। मधेश के लिए अन्तर्राष्ट्रिय समर्थन भी व्यापक रहा है, उसका लाभ भी हमें इस समय आजादी आंदोलन में मिलेगा, क्योंकि अन्तर्राष्ट्रिय समुदाय द्वारा नेपाल सरकार को बारम्बार अनुरोध करने पर भी वह मधेशियों को समुचित अधिकार देने के लिए नहीं मान रही है, यह स्पष्ट है। अगर ऐसा ही चलता रहा, अन्तर्राष्ट्रिय समुदाय की बात नेपाल सरकार नहीं मानती रही, उस परस्थिति में अन्तर्राष्ट्रिय समुदाय स्वतंत्र मधेश की सरकार को तुरन्त मान्यता प्रदान करेगी।
वर्तमान आन्दोलन में समाधान क्यों नहीं मिल रहा है ?
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इसके अनेकों कारणों में प्रमुख रहा है कि समाधान देने की चाबी आप नेपाली शासक के हाथ में रख दिए हैं। यानि कि मांग पूरी कराएगा कौन? नेपाल सरकार / नेपाली शासक। और उसकी नियत साफ है कि वह मधेशियों को पूरी तरह खत्म करके साफ कर देना चाहता है। इसलिए आजादी आंदोलन का स्वरुप निर्धारण करते समय इस बात को याद रखना होगा, कि हम फिर “नेपाली शासकों से मांगने” के चक्कर में न पडे, यानि कि “मांग पूरी करने या न करने की चाबी” नेपाल सरकार के हाथों में न दें। वैसा हूआ तो फिर महिनों नाकाबंदी करते रहेंगे, वे सुनेगा ही नहीं। इसलिए आजादी आन्दोलन ऐसा हो कि उसमें नेपाल सरकार से मांगने की बात न हो, नेपाल सरकार पर निर्भर न हो। जैसे कि अगर हम वर्तमान आंदोलन में भी आजादी के लिए जनमत संग्रह के माग उठा सकते थे, वह भी आजादी के लिए एक तरीका जरूर है, पर वह मांग रखकर जनमत संग्रह कराने या न कराने का निर्णय फिर नेपाल सरकार के हाथों में हम दे रहे होंगे, यानि नियंत्रण अपने हाथों में नहीं रहेगा। इसलिए पूर्ण नियन्त्रण अपने हाथों में रहनेवाला, सफलता सुनिश्चित होने वाला रास्ता ही हमें आजादी आंदोलन के लिए चयन करना होगा, जो कि निम्नानुसार है।
आजादी आंदोलन का स्वरुप (Concrete Plan)
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१. पहला चरण: जनता में जाकर कोणसभा, जनसभा, आमसभा आदि करके उन्हें आजादी के लिए जागृत करना, आजादी लाने के मार्ग को समझाना, आजादी आंदोलन के लिए एकबद्ध जनमत तैयार करना, साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मत और समर्थन भी ‘स्वतंत्र मधेश’ के पक्ष में तैयार करना
२. दूसरे चरण में मधेश में उच्चस्तरीय राजनैतिक संयन्त्र स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के पहल में गठन करना:
(क) उच्चस्तरीय राजनैतिक सुझाव समिति: विभिन्न राजनैतिक दल के राजनितिज्ञ, बुद्धिजीवि, उद्योगपति, नागरिक समाज आदि को मिलाकर
(ख) मधेश संवैधानिक सुझाव समिति : भूतपूर्व न्यायाधीश, कानूनविद्, संविधानविद्, वकील के सहभागिता में
(ग) मधेश निर्वाचन आयोग: भूतपूर्व न्यायाधीश, निर्वाचन आयुक्त आदि के नेतृत्व में
इसके साथ-साथ गठबन्धन के नेतृत्व में आवश्यक जनशक्ति और पूर्वाधार निर्माण के काम सम्पन्न होगा।
३. तीसरे चरण में
(क) ‘मधेश संविधान सभा / संसद ‘ निर्वाचन की घोषणा करना और उसे ३-६ महिने में चरणवद्ध रुप में सम्पन्न करना;
(ख) मधेश संसद और सरकार गठन करना;
(ग) अंतरराष्ट्रिय मान्यता के लिए आह्वान करना।
यानि कि मधेश में निर्वाचन कराके सरकार गठन करना ही आन्दोलन होगा (कोई गाडी जाम करना, नाकाबंदी करना और नेपाल सरकार से मांग पूरी कराने के लिए कहना नहीं पडेगा)। इसका फायदा यह है कि:
(क) ५०% से ज्यादा मत गिरता है तो स्वत: जनमत-संग्रह का काम हो जाएगा, क्योंकि जो लोग वोट डालेंगे, वे तो स्वंतत्र मधेश की सरकार के लिए डाल रहे हैं
(ख) निर्वाचित सरकार होने से अंतरराष्ट्रिय समर्थन मिलना आसान होगा
(ग) निर्वाचित मधेश संविधान-सभा और सरकार बनेगी, जो कि अभी राजनीमा देकर मुमकिन नहीं हो रहा है
(घ) निर्वाचन में मोर्चा / पार्टी के कार्यकर्ता भी उम्मीदबारी देने की संभावना प्रबल रहेगी, जिससे इस संयंत्र में मधेशी पार्टियां भी समावेश हो जाएगी। भले ही पार्टी अध्यक्ष से निर्देश रहने के कारण और पार्टी से आर्थिक आदि लाभ मिलते रहने के कारण अभी के जिला स्तर या निर्वाचन क्षेत्र स्तर के मधेशी पार्टियों के प्रमुख को लगना मुश्किल हो, पर उसके अलावा पार्टियों के सभी जिल्ला और क्षेत्रिय स्तर के नेता भी मधेश के संविधान सभा निर्वाचन में खुलकर हिस्सा लेंगे, और चाहकर-नचाहकर भी मधेशी पार्टी इसमें समावेश होगी ही।
(ङ) जो लोग पहले स्वतंत्र मधेश का समर्थन नहीं भी करते हो , दूसरों को देखकर या उस माहौल में, वे भी वोट डालने जाएंगे, और स्वतंत्रता के पक्ष में अपेक्षा से ज्यादा जनमत मिलेगा
(च) और सबसे बडी बात, इसमें कोई भी नियन्त्रण नेपाल सरकार के पास नहीं होगा कि हमारी मांग “आप” पूरा करों, बल्कि हम खुद करेंगे, हमें नेपाल सरकार से पाने के लिए इंतजार नहीं करना पडेगा
आप प्रश्न कर सकते हैं कि इतने बडे निर्वाचन कराएँगे कैसे ? इससे सम्बन्धित मुख्य प्रश्न कुछ इस प्रकार हो सकता है:
(क) सुरक्षा समस्या यानि क्या नेपाल सरकार करने देगी ?
– किसी गांव में निर्वाचन कराना किसी हाइवे बंद करने, नाकाबंदी करने, सदरमुकाम बंद करने आदि कार्यों से कठीन होगा? जैसे कि अभी के आंदोलन के माहौल लगभग पूरा मधेश आन्दोलनकारियों के नियन्त्रण में है, न तो कोई गाडी चलती है न तो सरकारी कार्यालय, तो ऐसे अवस्था में गांव-गांव में निर्वाचन कराने से कराने से सरकार कैसे रोक सकता है। और निर्वाचन कराना शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक गतिविधि है, अवरोधात्मक नहीं, आक्रामक नहीं, आपत्कालीन् नहीं, इसलिए इसे सेना परिचालित करके दबा भी नहीं सकता। दूसरी बात, कुछ जगहों पर नेपाल सरकार निर्वाचन में बाधा डाल भी दे, तो यह निर्वाचन एक ही दिन में, एक ही बार में सफल कराना आवश्यक तो नहीं होता है, निर्वाचन अनेकों चरणों में होता है। भाँडेगा, तो फिर दूसरे दिन किया जा सकता है। यह निर्वाचन ३ महिना, ६ महिना तक अनेक चरणों में चलेगा, और सम्पन्न होने में कोई कठिनाई नहीं रहेगी।
(ख) आर्थिक समस्या यानि निर्वाचन कराने इतना बडा खर्च कहाँ से लाएँगे ?
– सरकारी निर्वाचन में कितना खर्च होता है, इस पर न जाएँ। आप यह सोचें कि पिछले ३ महिने से मधेश आन्दोलित है, उसके के लिए एक गांव से आन्दोलन पर जितना खर्च हुआ है (ट्रैक्टर भाडा, लाउडस्पीकर, बैठक पर बैठक, खाना), क्या उतना खर्च उसी गांव में निर्वाचन कराने में लगेगा ? सच्चाई तो यह है कि १ दिन के बैठक या आंदोलन के लिए जितना खर्च होता है, उतने में ही निर्वाचन सम्पन्न किया जा सकता है।
(ग) जनशक्ति समस्या यानि निर्वाचन कराने अधिकृत, कर्मचारी, स्वयंसेवक कहाँ से लाएँगे ?
– जब सरकार निर्वाचन कराती है तो उसके लिए भी कोई निर्वाचन कर्मचारी या जनशक्ति स्थायी नहीं रहता, सिर्फ ऊपरी संरचना को छोडकर, यानि कि शिक्षक, कर्मचारी, स्वास्थ्यकर्मी इन्हीं लोगों को निर्वाचन कराने के लिए भी रवाना किया जाता है। तो उसी तरह मधेश में भी निर्वाचन कराने के लिए मधेशी कर्मचारी, शिक्षक आदि को ही काम में लाया जाएगा। सुरक्षा के लिए स्वयंसेवक दस्ता तैयार किया जाएगा, जो कि हो भी रहा है।
(घ) क्या इसे मान्यता मिलेगी ?
– अगर हम गम्भीर होकर, सर्वपक्षीय सहमति से करे तो जरुर मान्यता मिलेगा। उसके लिए अन्तरराष्ट्रिय मान्यता के अनुसार अपना काम करना होगा, हाइ-प्रोफाइल लोगों को (जैसे भूतपूर्व निर्वाचन आयुक्त, न्यायाधीश आदि को) निर्वाचन आयुक्त बनाकर आगे बढना होगा। अन्तराष्ट्रिय ओबजरवर को लाना होगा, जिसके लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के विभिन्न एजेन्सी, कार्टर सेन्टर, विभिन्न NGO/INGO, विभिन्न राष्ट्र के प्रतिनिधि आदि को लाया जा सकता है। ऐसे माहौल में कराने पर मधेश के निर्वाचन, और मधेश के संसद और सरकार को जरूर अन्तरराष्ट्रिय मान्यता मिलेगी। और अभी के सन्दर्भ में जिस तरह से अन्तरराष्ट्रिय समुदाय छटपटा रहे हैं कि अब नेपाल हमारी बात मान ही नहीं रहा है, अब क्या करें, उस समय में उनके आगे निर्वाचित मधेश सरकार मिल जाय, तो अन्तरराष्ट्रिय समुदाय झट से उस मधेश सरकार को समर्थन देने में लगेगा।
और इस प्रक्रिया द्वारा मधेश ६ महिना के भीतर आजाद हो सकता है।
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